बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 इतिहास बीए सेमेस्टर-1 इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 इतिहास के नवीन पाठ्यक्रमानुसार प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
उत्तर-
सन् 615 ई. में पुलकेशिन द्वितीय ने अपने छोटे भाई कुब्ज विष्णुवर्द्धन विषमसिद्धि को पूर्वी प्रान्तों के सुशासन के लिए नियुक्त किया था। पुलकेशिन द्वितीय का पुत्र जयसिंह प्रथम था। उसने वेगी में अपनी स्वतन्त्रता घोषित करके पूर्वी चालुक्यों के स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। लगभग 5 शताब्दियों तक जयसिंह के उत्तराधिकारियों ने अनेक विषय राजनीतिक उतार-चढाव के साथ आंध्र देश तथा कलिंग के कुछ भाग पर राज्य किया।
वेंगी के चालुक्यों की राजभूमि बहुत उर्वर थी। उन दिनों की राजनीतिक घटनाओं की महत्ता का कारण यही है। चालुक्यों की वेंगी शाखा के सम्राट ने अपने सैनिक राष्ट्रकूटों, गगों तथा अन्य समकालीन राजाओं के साथ युद्ध किया। इस युद्ध में उसे विजय प्राप्त हुई। लेकिन इससे चोलों की शक्ति बढ़ गयी, जिसके फलस्वरूप लगभग दसवीं शताब्दी में वेंगों की शक्ति घटने लगी थी। चोलराज राजराज प्रथम ने उन्हें परेशान कर रखा था। लेकिन शक्तिवर्मन (सन् 1000 ई. 1011 ई.) ने थोड़े समय के लिए अपने वंश की शक्ति को स्थिर किया। उसके उत्तराधिकारी विमलादित्य (सन् 1011-18 ई.) के शासनकाल में तन्जौर के चोलों का प्रभाव अधिक बढ़ गया। इसका कारण विमलादित्य का वैवाहिक सम्बन्ध कहा जाता है। विमलादित्य ने चोल राजकुमारी कुन्दवा से विवाह किया। कुन्दवा ने विमलादित्य को जन्म दिया। विमलादित्य के पुत्र राजराज विष्णुवर्द्धन ने मातृकाल में ही राजेन्द्र चोल की कन्या को अपनी रानी बना लिया। राजेन्द्र चोल जो विष्णुवर्द्धन का पुत्र था, ने सन् 1060 ई. में इन दोनों राजवंशों की शासन सत्ता धारण कर ली तथा चोलराज राजेन्द्र द्वितीय तथा कुल्लोतुंग प्रथम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शासन सत्ता धारण कर लेने के पश्चात् कुल्लोतुंग प्रथम ने अपने चाचा विक्रमादित्य सप्तम को वेगी से निकाल दिया। वहाँ पर उसने अपने दो पुत्रों राजराजा मुमण्ड चोड तथा वीर चोड को शासन करने का आदेश दिया। इस प्रकार दो वंशों को जोडा गया। यह मिला हुआ वंश' दो शताब्दियों तक चला। अन्त में पड़ोसी राजाओं के प्रबल होने के कारण इस वंश का पतन शुरू हो गया और लगभग 1200 ई. में चालुक्यों का विनाश हो गया।
कल्याणी के चालुक्य - अभिलेखो से इस बात की जानकारी मिलती है कि तैलप कीर्तिवर्मन द्वितीय के किसी चाचा का वंशज कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक था। यदि तैलप की धमनियों में वातापी के चालुक्यों का खून है, तब तो वह ठीक है लेकिन सर रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने इसमें संदेह प्रकट किया है तथा कहा है कि तैलप किसी ऊँचे वंश से सम्बन्ध नहीं रखता था क्योंकि उसके वंश का आदि पुरुष न तो हरीति है और न उनका गोत्र ही वातापी के चालुक्यों का है। कल्याणी के चालुक्यों का गोत्र मानत्य है।
तैलप - प्रारम्भ में तैलप राष्ट्रकूटों का सामन्त नृपति था। डॉ. अल्तेकर ने कहा है कि तैलप हैदराबाद रियासत के उत्तरी भाग मं कही पर सामन्त था। तैलप के राष्ट्रकूट तृतीय का कर्मचारी होने की जानकारी बोगवाडी तालुका में नरसल्गी स्थान से प्राप्त होती है।
तैलप अति महत्वाकाक्षी व्यक्ति था। वह अपने महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अच्छे अवसर की तलाश कर रहा था। जब परमारों ने राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट पर हमला किया, तब तैलप ने इस स्थिति का फायदा उठाया। परमारों ने मान्यखेट का अपभ्रंश कर डाला। राष्ट्रकूट कर्क द्वितीय अभी ठीक से संभल भी न पाया था कि तैलप ने उस पर हमला बोल दिया और उसको हरा कर बाहर निकाल दिया। इस प्रकार उसकी शक्ति बढी लेकिन अभी भी वह पूर्ण रूप से अपने को शक्तिशाली नहीं मानता था। राष्ट्रकूट गद्दी के लिए एक प्रकार के उत्तराधिकारी के युद्ध शुरू हो गये। तैलप ने इन्द्र चतुर्थ तथा दूसरे महत्वाकांक्षी चालुक्यों को दबा दिया और स्वयं मान्यखेट की गद्दी पर बैठ गया। सिंहासन पर बैठते ही उसने सैनिक अभियान शुरू कर दिया। सबसे पहले उसने दक्षिणी गुजरात पर हमला बोला और उसमें विजय प्राप्त की और वहाँ पर उसने वारप्प को अपना शासक नियुक्त किया लेकिन मूलराज सोलंकी ने बारप्प को वहाँ से भगा दिया। इसके बाद तैलप ने कुन्तल (कनारा) प्रदेश को अपने आधिपत्य में ले लिया और चेदियों तथा चोलों को हरा दिया। इससे यह ज्ञात होता है कि चेदि तथा चोल उसके सामन्त थे। तैलप ने लगातार परमारराज वाक्पति भुज से युद्ध किया। मेरुतुंग कहते हैं कि मुज ने तैलप को 6 बार युद्ध में हराया। लेकिन सातवी बार मे तैलप ने उसका विरोध किया और मुज को हरा दिया। तैलप ने मुज को जान से मार डाला।
सन् 993 के अभिलेख जो काखण्डकी नामक स्थान में मिले, इससे ज्ञात होता है कि तैलप मान्यखेट में ही शासन करता रहा। कल्याणी राजधानी बहुत दिनो के बाद बनी। कुल मिलाकर तैलप का शासनकाल 21 वर्षों का था। तैलप की मृत्यु लगभग 997 ई. में हुई।
सत्याश्रय (सन् 997 ई. से सन् 1008 ई.) तैलप के गर जाने के बाद कल्याणी के चालुक्यों पर आक्रमण से घबराये चोल राजा राजराज प्रथम ने तैलप के राज्य को आक्रमणों से आतंकित कर दिया। इस कारण चारों ओर त्राहिमाम', 'त्राहिमाम के स्वर गूंज उठे। तैलप का पुत्र सत्याश्रय किसी तरह संभला सत्याश्रय ने सन 997 से सन 1008 तक शासन किया।
विक्रमादित्य पंचम (1008-1015 ई.)
सत्याश्रय के बाद उसका भतीजा विक्रमादित्य पंचम ने राज्य भार धारण किया। विक्रमादित्य पंचम को सर रामकृष्ण गोपाल भंडारकर विक्रमादित्य प्रथम के नाम से भी जाना जाता है। इसके शासनकाल में चालुक्यों ने पुन युद्ध शुरू कर दिया। परम राजा भोज अपने चाचा वाक्पति मुंज की मृत्यु का बदला लेना चाहता था। इसलिए उसने विक्रमादित्य पर हमला बोल दिया। इससे चालुक्य घबरा गये लेकिन अन्त मे वे हार गये।
जयसिंह द्वितीय (1015 ई. - 1043 ई.)
जब विक्रमादित्य पंचम की मृत्यु हो गयी थी तब उसका राज्यभार उसके छोटे भाई अय्यण द्वितीय ने एक वर्ष तक धारण किया। तत्पश्चात् 1015 ई में उसका सबसे छोटा भाई जयसिंह चालुक्य वंश के सिंहासन पर बैठा। जैसे ही वह सिंहासन पर बैठा उसे अनेक कठिनाइयो एव युद्धों का सामना करना पड़ा।
परमारों से युद्ध - उस समय मालवा में परमार वंश के राजा भोज राज्य करते थे। वे बहुत ही दानी स्वभाव के थे। वे यह न भुला पाये थे कि परमारों ने चालुक्यों को कितनी बुरी तरह बेइजत किया है। इस कारण उन्होंने चालुक्यों के राज्य पर हमला बोल दिया और कोंकण के प्रदेशों को हस्तगत कर लिया। लेकिन बहुत लम्बे समय तक भोज इन प्रदेशों पर राज्य न कर सके। लगभग 1024 ई. में जयसिंह द्वितीय ने पुनः उनको अपने कब्जे में ले लिया।
चोलो से युद्ध - जयसिंह के शासनकाल मे चोल राज्य का शासक राजेन्द्र था। वह बहुत पराक्रमी था। जयसिंह द्वितीय ने भी उसका सामना किया। जयसिंह द्वितीय यह चाहता था कि वेगी के सिंहासन पर विक्रमादित्य सप्तम बैठे लेकिन चोल शासक राजेन्द्र राजराज को सिहासन पर बैठाना चाहते थे। इस कारण जयसिंह ने तुंगभद्रा नदी पार करके चोलो से बेल्लारी तथा गंगवाडि के कुछ भागों को अपने अधिकार में कर लिया। इसी प्रकार विक्रमादित्य सप्तम ने भी वेंगी पर हमला बोल दिया और विजयवाड़ा के कुछ भागों को छीन लिया। राजेन्द्र इन सबसे अधिक क्षुब्ध हुआ। कास्को नामक स्थान पर जयसिंह और राजेन्द्र के बीच बहुत लडाई हुई। इस लड़ाई में जयसिंह हार गया तथा राजेन्द्र ने तुंगभद्रा नदी तक के सम्पूर्ण भू-भाग पर शासन जमा लिया। चोलों ने वेंगी में भी विजय प्राप्त की और उन्होंने राजराज को वहाँ का राजा बना दिया।
विद्रोहों का दमन - जयसिंह ने अपने चतुर सेनापति केलदास की सहायता से विद्रोहियों का दमन करने में सफलता प्राप्त की।
राजधानी परिवर्तन - कुछ विद्वानों का मानना है कि जयसिंह ने अपने कार्यकाल में अपनी राजधानी मान्यखेट से परिवर्तन कर कल्याणी बनायी थी। लेकिन कुछ दूसरे विद्वानों के अनुसार यह कार्य उसके पूर्व ही हो चुका था।
मृत्यु एवं उपाधियाँ - जयसिंह 1041 ई. में मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसको त्रैलोक्य कल्ल, विक्रम सिंह, जकदेकमल्ल की उपाधि से विभूषित किया गया था।
सोमेश्वर प्रथम (1041 ई. - 1068 ई.)
जयसिंह की मृत्यु के बाद सोमेश्वर प्रथम वहाँ के राजसिंहासन पर बैठा। उसने अपना सम्पूर्ण जीवन लडाइयों में व्यतीत कर डाला।
मालवा पर आक्रमण - सोमेश्वर प्रथम ने मालवा पर आक्रमण कर दिया तथा वहाँ के राजा को नतमस्तक होने पर मजबूर कर दिया। इसी समय मालवा में एक घटना घटी। चालुक्यों की पूर्वी शाखा के राजा भीम और कलचुरि राजा कर्ण ने मिलकर मालवा पर हमला बोल दिया और उस पर विजय प्राप्त कर ली। सोमेश्वर प्रथम भी ऐसी स्थिति में शान्त न बैठा। शीघ्र ही उसने अपने पिता विक्रमादित्य षष्ठम् को कल्चुरियों और चालुक्यों को मालवा से बाहर निकालने के लिए भेजा। विक्रमादित्य एक भारी सेना लेकर मालवा पहुँचा तथा कर्ण और भीम को हराकर मालवा का उद्धार किया तब जयसिंह मालवा का राजा बना।
चोलों से युद्ध - सोमेश्वर प्रथम ने अपना अधिकांश समय चोलों से युद्ध करने में लगा दिया। उसने विजयादित्य सप्तम को राजा बनाने का प्रयास किया। चोल नरेश राजेन्द्र राजराज की तरफ था और उसने अपने पुत्र राजाधिराज को विजयादित्य सप्तम तथा सोमेश्वर से लोहा लेने के लिए भेजा। युद्ध के बीच में ही चोल राजा राजेन्द्र प्रथम की मृत्यु हो गयी। तब राजाधिराज सिहासन पर बैठा। उसने सोमेश्वर से युद्ध किया और धन्यकटक के प्रसिद्ध युद्ध में सोमेश्वर के पुत्र विक्रमादित्य को हरा दिया। विजयादित्य सप्तम यह देखकर वहाँ से भाग निकला। इसके बाद वह राजाधिराज सोमेश्वर के राज्य पर आक्रमण करने- के लिए अग्रसर हुआ तथा उसके कैल्लिपाक्कई के किले तथा काम्पलि के राजप्रसाद को नष्ट कर डाला। इसके बाद वह कल्याणी की तरफ अग्रसर हुआ और उसे भी अपने अधिकार में कर लिया। चालुक्यों के प्रति यह महत्वपूर्ण विजय थी। इस उपलक्ष्य में राजाधिराज ने अपना वीराभिषेक करके 'विजयराजेन्द्र' की उपाधि से स्वयं को विभूषित किया।
भले ही सोमेश्वर की हार हो गयी थी लेकिन वह निराश नहीं हुआ। उसने पुनः चोलों पर आक्रमण किया और 1050 ई. में उन्हें राज्य के बाहर खदेड़ दिया। तत्पश्चात् वह वेगी की ओर बढ़ा। वहाँ राजा राजराज को भी नतमस्तक किया। वह चोलों की राजधानी काची पर भी चढ दौडा लेकिन थोडी-बहुत लूटमार के बाद वह लौट आया।
चोल नरेश राजाधिराज सोमेश्वर के क्रियाकलापों से अत्यन्त दुःखी हो गया और उसके पुत्र के साथ सोमेश्वर से लोहा लेने के लिए प्रस्थान किया। कोप्पक नामक स्थान पर चोलो और चालुक्यों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में चोल नरेश वीरगति को प्राप्त हुआ। लेकिन उसके पुत्र राजेन्द्र चोल ने युद्ध को बन्द नहीं किया और अन्त में विजय प्राप्त की। उसने चोलो की बहुत सी सम्पत्ति अपने अधिकार में ले ली।
इस हार से भी सोमेश्वर ने धैर्य न छोड़ा और उसने दोबारा वेगी की ओर ध्यान दिया। वेगी नरेश राजराज की मृत्यु के बाद सोमेश्वर ने विजयादित्य सप्तम् के पुत्र शक्तिवर्मन को वेंगी के सिहासन पर बैठाया और अपने सेनापति चामुण्डराज को चोलों के बढ़ते हुए वेग को रोकने के लिए मेजा। लेकिन भाग्य ने उसका साथ न दिया और चामुण्डराज तथा शक्तिवर्मन दोनो ही चोलो से पराजित हुए और मौत के घाट उतार दिए गए। चालुक्यों ने गंगवाडि पर अपना शासन जमा लिया। लेकिन चोलो ने उन्हें वहाँ से भी निकाल बाहर कर दिया
1063 ई के चोल वंश के राजा राजेन्द्र द्वितीय का निधन हो गया। तत्पश्चात् वीर राजेन्द्र गद्दी पर बैठा। उसने भी सोमेश्वर का सामना किया और तुंगभद्रा नदी के किनारे चालुक्यों को पराजित किया। वेगी में चालुक्यों का प्रभाव नहीं रहा।
कोंकण पर आक्रमण - जिस समय सोमेश्वर ने उत्तरी कोंकण पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ गृहयुद्ध चल रहा था। इसलिए सोमेश्वर ने युद्ध में विजय प्राप्त कर ली और अपने एक मंत्री को वहाँ का राजा बना दिया लेकिन वह अधिक दिनों तक राज्य न कर सका। कोकण के राजकुमार अनन्त पाल ने उसे राजसिंहासन से हटाकर स्वयं सिंहासन पर बैठ गया।
केरल विजय - सोमेश्वर ने केरल पर भी विजय प्राप्त की और वहाँ के राजा को मार दिया।
अन्य विजयें - सोमेश्वर प्रथम की कुछ अन्य विजयों का भी वर्णन किया गया है। उसने लाट और गुजरात पर आक्रमण करके वहाँ के राजाओं को हरा दिया। विदर्भ मध्य प्रदेश के कुछ राज्य सहित कोशल और कलिंग पर भी अपना शासन स्थापित कर लिया। उसने चित्रकूट के राजा धारावर्ष को भी हरा दिया। विल्हण के अनुसार उसके पुत्र ने पूर्वी भारत के गौड और कामरूप तथा दक्षिण में पाण्ड्य और लंका आदि पर भी आक्रमण किया। कुछ अभिलेखों से इस बात की जानकारी मिलती है कि सोमेश्वर ने मगध, पांचाल, कन्नौज, वंग, खस, कुरू, आभीर और नेपाल आदि राज्यों को भी अपने अधिकार में ले लिया। लेकिन यह भी अभिलेख उसकी प्रशस्तिमात्र मालूम होती है। ये विजयें निश्चित नहीं कही जा सकती।
मृत्यु -सोमेश्वर अपने जीवन के अन्तिम दिनों में रोगग्रस्त हो गया। अत उसके जीवन के अन्तिम दिन अच्छे नहीं बीते। उसने 1068 ई. में जिन्दगी से तंग आकर तुंगभद्रा नदी में डूबकर अपने प्राण दे दिये।
मूल्यांकन - सोमेश्वर एक वीर पुरुष, राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी और महान कलाप्रेमी था। उसने मान्यखेट नामक स्थान पर अपनी राजधानी कल्याणी बनायी थी। अपनी वीरता के कारण ही उसने आवमल्ल, पीरमार्तण्ड, राजनारायण, त्रैलोक्यमल्ल आदि अनेक उपाधियाँ धारण की थी। सोमेश्वर की गणना चालुक्य वंश के सबसे प्रतिभाशाली शासकों में की जाती है। सोमेश्वर ने जीवन पर्यन्त युद्ध किया। यद्यपि उसे उसके पराजयों का सामना करना पड़ा था फिर भी वह निराश न हुआ।
के. एन. शास्त्री के अनुसार, "अनेक पराजयों के बावजूद अपने जीवन के अन्तिम समय तक उसने बिना किसी कम उत्साह के चोलों से भयानक संघर्ष जारी रखा। वह एक योद्धा की बजाय अधिक राजनीतिज्ञ था। अन्यथा वह इतने अधिक राज्यों में और इतने लम्बे समय तक अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल नहीं हो सकता था।
सोमेश्वर द्वितीय (1068 ई. - 1076 ई.) -सोमेश्वर प्रथम की जब मृत्यु हो गयी तब चालुक्य वंश के सिंहासन पर सोमेश्वर प्रथम का सबसे बड़ा पुत्र सोमेश्वर द्वितीय बैठा।
सोमेश्वर द्वितीय की उपलब्धियाँ - सोमेश्वर द्वितीय ने निम्न उपलब्धियाँ हासिल की
मालवा नरेश पर आक्रमण - सोमेश्वर द्वितीय ने मालवा नरेश जयसिंह पर हमला बोलकर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया लेकिन कुछ समय के बाद मालवा ने पुनः स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली।
चालुक्य-चोल सम्बन्ध - सोमेश्वर द्वितीय के समय चालुक्यों और चोलो के सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहते थे। सोमेश्वर के भाई विक्रमादित्य षष्ठ ने अपने साले अधिराजेन्द्र का साथ दिया और उसे चोल सिहासन पर बैठाया लेकिन भाग्य ने उसका साथ न दिया और कुछ समय बाद जनता ने विद्रोह किया और अधिराजेन्द्र की हत्या कर दी गयी।
1070 ई में राजेन्द्र द्वितीय कुलोतुंग के नाम से चोल राजा बना। सोमेश्वर द्वितीय ने उसका प्रभाव कम करना चाहा और उससे मित्रता कर ली। फिर दोनों की सेना ने मिलकर विक्रमादित्य के राज्य पर हमला बोल दिया और उससे उसका राज्य हथिया लिया। लेकिन दुर्भाग्य से सोमेश्वर द्वितीय पकड़ा गया और उसको मार दिया गया। सोमेश्वर द्वितीय की हत्या के बाद विक्रमादित्य षष्ठम् चालुक्य सिहासन पर बैठा।
विक्रमादित्य षष्ठ
जब विक्रमादित्य षष्ठम् सिंहासन पर बैठा तब उसने चालुक्य विक्रम संवत् चलाया और 'त्रिभुवनमल्ल' की उपाधि धारण की।
विक्रमादित्य षष्ठ की उपलब्धियाँ - विक्रमादित्य षष्ठ ने निम्न उपलब्धियों प्राप्त कीं -
भाई के विरोध का दमन - जयसिंह जो विक्रमादित्य षष्ठम का छोटा भाई था, ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया और उसको पराजित कर दिया। लेकिन कुछ समय बाद विक्रमादित्य षष्ठम् ने जयसिंह पर हमला बोलकर उसे बन्दी बना लिया। बाद में उसे छोड़ दिया।
होयसलों, कदम्बों और पाण्ड्यों का दमन - होयसल गगवाडि में चालुक्यों के अधीन राज्य करते थे। होयसल नरेश को विक्रमादित्य के शासनकाल में विष्णुवर्द्धन की संज्ञा दी गई थी। विष्णुवर्द्धन अपनी शक्ति पर घमण्ड करता था। अतः उसे पाण्ड्यों और कदम्बों के साथ मिलकर अपने स्वामी विक्रमादित्य के राज्य पर हमला किया और कुछ भाग पर अपना शासन जमा लिया। लेकिन विष्णुवर्द्धन को थोडे समय के लिए नतमस्तक होना पड़ा। पाण्ड्य और कदम्ब जो विष्णुवर्द्धन की सहायता करते थे. वे भी पराजित हुए।
चोलों से युद्ध - लगभग 1118 ई में विक्रमादित्य षष्ठम् ने चोलों के राजा, कुलोतुंग के साथ युद्ध किया और वेंगी पर अपना शासन जमा लिया और सेनापति अनन्तपाल को वहाँ का राजा बना दिया।
यादवों का दमन - यादव चालुक्यों के अधीन थे। 1100 ई. के लगभग यादवों ने विद्रोह किया लेकिन विक्रमादित्य ने उनके विद्रोहों का दमन सफलतापूर्वक कर दिया।
अन्य विजयें - कुछ अभिलेखो से यह ज्ञात होता है कि विक्रमादित्य षष्ठम ने विदर्भ, सिन्धु, गुर्जर, कश्मीर, तुरुक, आभीर वंग आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। लेकिन इन विजयों के विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।
मृत्यु - 1126 ई. मे विक्रमादित्य षष्ठम् की मृत्यु हो गयी।
मूल्यांकन - विक्रमादित्य षष्ठम् एक महान विजेता, चतुर राजनीतिज्ञ, जीवन उत्कृष्ट विद्वान तथा महान निर्माता के रूप में माने जाते हैं। उसने पर्यन्त युद्ध किये और चोलो, होयसलों, पाण्ड्यों और कदम्बों को दबा कर रखा। लंका के राजा से उसने कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किये और 1083 ई में वहाँ अपना एक दूतमण्डल भेजा।
विक्रमादित्य षष्ठ विद्वान होने के अतिरिक्त विद्वानों का आश्रयदाता भी था। उसकी सभा में विल्हण नामक एक प्रसिद्ध कवि था जिसने 'विक्रमांकदेवचरित' नामक महाकाव्य का सृजन किया।
वह एक महान निर्माता भी था। विक्रमपुर नामक एक नवीन नगरी की स्थापना करने का श्रेय उसी को प्राप्त है। उसने एक विशाल मन्दिर की स्थापना की थी।
सोमेश्वर तृतीय ( 1126 ई. - 1138 ई.)
विक्रमादित्य षष्ठम् के बाद उसका पुत्र सोमेश्वर तृतीय सिंहासन पर बैठा। सोमेश्वर तृतीय विद्या में अधिक रुचि रखता था। युद्ध में वह रुचि नहीं रखता था। जिसके परिणामस्वरूप उसके शासनकाल में होयसल नरेश विष्णुवर्धन चालुक्यों की अधीनता से मुक्त हो गया और उसने स्वतन्त्र रूप से शासन करना प्रारम्भ किया। होयसल नरेश ने चालुक्य राज्य के वनवासी प्रदेश को भी हस्तगत कर लिया। उधर चालुक्य नरेश कुलोतुंग द्वितीय भी पीछे न रहा और उसने भी चालुक्यों से आन्ध्र प्रदेश को छीन लिया। लेकिन ऐसा लगता है कि थोड़े समय बाद चालुक्यों ने फिर आन्ध्र प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया। सोमेश्वर तृतीय ने नेपाल और मगध पर विजय प्राप्त की जिसका वर्णन कुछ अभिलेखों में है, लेकिन यह कहना कि सोमेश्वर तृतीय की रुचि मगध और नेपाल को जीतना था, ठीक नही लगता।
ऊपर बताया जा चुका है कि सोमेश्वर तृतीय युद्ध में रुचि नहीं रखता था लेकिन विद्याध्ययन मे रुचि रखता था। उसने 'मानसोल्लास' नामक ग्रन्थ का सृजन किया और भूलोकमल्ल व त्रिभुवन मल्ल आदि उपाधियो को धारण किया। सोमेश्वर तृतीय की मृत्यु 1138 ई. के लगभग हुई।
जगदेकमल्ल द्वितीय (1138-1151 ई.) - सोमेश्वर तृतीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जगदेकमल्ल द्वितीय ने राजभार संभाला। जगदेक ने होयसलों और कदम्बो को दबाया। मालवा के राजा जयवर्मन परमार को सिंहासन पर बैठाकर उसने वहाँ अपने एक मित्र बल्लाल को शासक नियुक्त किया। गुर्जर नरेश कुमारपाल और चोल नरेश कुलोतुंग द्वितीय को पराजित करने का श्रेय उसी को प्राप्त है।
तैल तृतीय (1151 ई. - 1156 ई.) - तैल तृतीय जगदेकमल्ल का दूसरा भाई था। जगदेकमल्ल के बाद तैल तृतीय सिहासन पर बैठा। यह अत्यन्त दुर्बल शासक था। उसके शासनकाल में होयसलों काकातियों व यादवों ने विद्रोह किया था। होयसल राजा विष्णुवर्द्धन ने चालुक्यों के कई प्रदेशों को छीन लिया। तलवाडि कलचुरि भी अत्यन्त शक्तिशाली हो गये। उनका राजा विजल था। काकतीय सामन्त चोल द्वितीय का दमन करने के लिए जब तैल ने उन पर आक्रमण किया तो चोल ने तैल को बन्दी बना लिया। दया के वशीभूत होकर उसने उसे स्वतन्त्र कर दिया। चोल की मृत्यु के बाद उसके पुत्र रुद्र ने भी तैल को नतमस्तक किया और होयसलों से दब गये।
चालुक्यों की शक्ति को नष्ट होता देखकर कलचुरि राजा विजल ने चालुक्य राज्य पर आक्रमण करके 1157 ई. में उसके बड़े भाग पर अधिकार कर लिया। विझल ने होयसलों, गंगो, चोलो, चेरी चेदियों और गुर्जरों को भी पराजित किया और जीवन-पर्यन्त तैल तृतीय कलचुरियों के अधीनस्थ रहा।
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- प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता का परिचय दीजिए व भारत में उसके बाद विकसित होने वाली सभ्यता व संस्कृति को चित्रित कीजिए।
- प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहाकार कल्हण व आर. सी. मजूमदार का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय ज्ञान प्रणाली के स्रोत पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जदुनाथ सरकार, वी. डी. सावरकर, के. पी. जायसवाल का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- नृत्य व रंगमंच की भारतीय संस्कृति से अवगत कराइये।
- प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता से मगध राज्य तक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के प्रख्यात इतिहासकार विपिनचन्द्र पर टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- सन्यास आश्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनुस्मृति में लिखित विवाह के प्रकार लिखिए।
- प्रश्न- वैदिक काल में दास प्रथा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ पर लघु लेख लिखिए।
- प्रश्न- 'संस्कार' पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गृहस्थ आश्रम के महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- महाकाव्यकालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वैदिककालीन स्त्रियों की दशा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- वैदिककाल में विवाह तथा सम्पत्ति अधिकारों की क्या स्थिति थी?
- प्रश्न- उत्तर वैदिककाल की राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- विदथ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऋग्वेद पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- आर्यों के मूल स्थान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'सभा' के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- वैदिक यज्ञों के सम्पादन में अग्नि के महत्त्व को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- उत्तरवैदिक कालीन धार्मिक विश्वासों एवं कृत्यों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- बिम्बिसार के समय से नन्द वंश के काल तक मगध की शक्ति के विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नन्द कौन थे? महापद्मनन्द के जीवन तथा उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न. बिम्बिसार की राज्यनीति का वर्णन कीजिए तथा परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उदयिन के जीवन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नन्द साम्राज्य की विशालता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- धननंद और कौटिल्य के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धननंद के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- मगध की भौगोलिक सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मौर्य कौन थे? इस वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का उल्लेख कीजिए तथा महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी उपलब्धियों और शासन व्यवस्था पर निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सम्राट बिन्दुसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- मौर्यकाल में सम्राटों के साम्राज्य विस्तार की सीमाओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सुदर्शन झील पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अशोक के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताइये कि वह किस प्रकार सिंहासन पर बैठा था?
- प्रश्न- सम्राट अशोक के साम्राज्य विस्तार पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सम्राट के धम्म के विशिष्ट तत्वों का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अशोक के शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'भारतीय इतिहास में अशोक एक महान सम्राट कहलाता है। यह कथन कहाँ तक सत्य है? प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मौर्य वंश के पतन के लिए अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
- प्रश्न- अशोक ने धर्म प्रचार के क्या उपाय किये थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सारनाथ स्तम्भ लेख पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- बृहद्रथ किस राजवंश का शासक था और इसके विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कौटिल्य और मेगस्थनीज के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कौटिल्य की पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में उल्लेखित विषयों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कौटिल्य रचित 'अर्थशास्त्र' में 'कल्याणकारी राज्य' की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काचगुप्त कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त की विजयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रगुप्त (द्वितीय) की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से लिखिए।
- प्रश्न- कल्याणी के उत्तरकालीन पश्चिमी चालुक्य को समझाइए।
- प्रश्न- गुप्त शासन प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- गुप्तकाल की साहित्यिक एवं कलात्मक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुप्तों के पतन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुप्तों के काल को प्राचीन भारत का 'स्वर्ण युग' क्यों कहते हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के विषय में बताइए।
- प्रश्न- आर्यभट्ट कौन था? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राजा के रूप में स्कन्दगुप्त के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कुमारगुप्त पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कुमारगुप्त प्रथम की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कालिदास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विशाखदत्त कौन था? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्कन्दगुप्त कौन था?
- प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आपसूक्ष्म में बताइए।
- प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की उत्पत्ति का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
- प्रश्न- मिहिरभोज की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न-
- प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम के शासन-काल का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- वत्सराज की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास में नागभट्ट द्वितीय के स्थान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मिहिरभोज की राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार सत्ता का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों का विघटन पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महेन्द्रपाल प्रथम कौन था? उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए। उत्तर -
- प्रश्न- राजशेखर और उसकी कृतियों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राज्यपाल तथा त्रिलोचनपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में प्रतिहारों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- कन्नौज के प्रतिहारों पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रतिहार वंश का महानतम शासक कौन था?
- प्रश्न- गुर्जर एवं पतन का विश्लेषण कीजिये।
- प्रश्न- कीर्तिवर्मा द्वितीय एवं बादामी के चालुक्यों के अन्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चालुक्य राज्य के अंधकार काल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पूर्वी चालुक्य शासकों ने कला और संस्कृति में क्या योगदान दिया है?
- प्रश्न- चालुक्य कौन थे? इनकी उत्पत्ति के बारे में बताइए।
- प्रश्न- वेंगी के पूर्व चालुक्यों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चालुक्यकालीन धर्म एवं कला का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चालुक्यों की विभिन्न शाखाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चालुक्य संघर्ष के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कल्याणी के पश्चिमी चालुक्यों की शक्ति के प्रसार का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- चालुक्यों की उपलब्धियों के महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चालुक्यों की शासन व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चालुक्य- पल्लव संघर्ष का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- परमारों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राजा भोज के शासन काल में चतुर्दिक उन्नति हुई।
- प्रश्न- परमार नरेश वाक्पति II मुंज के शासन काल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राजा भोज के शासन प्रबंध के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइए।
- प्रश्न- परमार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए तथा इस वंश का पतन क्यों हुआ?
- प्रश्न- परमार साहित्य और कला की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- परमार वंश का संस्थापक कौन था?
- प्रश्न- मुंज परमार की उपलब्धियों का आंकलन कीजिए।
- प्रश्न- 'धारा' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सीयक द्वितीय 'हर्ष' के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सिन्धुराज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- परमारों के पतन के कारण बताइए।
- प्रश्न- राजा भोज एवं चालुक्य संघर्ष का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- राजा भोज की सांस्कृतिक उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- परमार इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भोज परमार की उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- परमारों की प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के शासन काल की घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अर्णोराज चाहमान के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए। मोहम्मद गोरी के हाथों उसकी पराजय के क्या कारण थे? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- चाहमान कौन थे? विग्रहराज चतुर्थ के विजयों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चाहमान कौन थे?
- प्रश्न- विग्रहराज द्वितीय के शासनकाल की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अजयराज चाहमान की उपलब्धियों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पृथ्वीराज और जयचन्द्र की शत्रुता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पृथ्वीराज रासो के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- चाहमान वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
- प्रश्न- चाहमानों के विदेशी मूल का सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के चन्देलों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गोविन्द चन्द्र गहड़वाल की उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गहड़वालों की उत्पत्ति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जयचन्द्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अर्णोराज के राज्यकाल की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चाहमानों (चौहानों) के राजनीतिक इतिहास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ललित विग्रहराज नाटक पर नोट लिखिए।
- प्रश्न- चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय के तराइन युद्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चौहान वंश के इतिहास जानने के स्रोतों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामंतवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामंतवाद के पतन के कारण बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में सामंतवाद की क्या स्थिति थी?
- प्रश्न- मौर्य प्रशासन और सामंतवाद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न-
- प्रश्न- वेदों की उत्पत्ति के विषय में बताइए। वेदों ने हमारे जीवन को किस प्रकार के ज्ञान दिये?
- प्रश्न- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए
- प्रश्न- हिन्दू वर्ग की जाति-व्यवस्था व त्योहारों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- 'लिंगायत'' के बारे में बताइए।
- प्रश्न- हिन्दू धर्म के सुधारकों के विषय में बताइए।
- प्रश्न- हिन्दू धर्म में आत्मा से सम्बन्धित विचारों से अवगत कराइये।
- प्रश्न- हिन्दुओं के मूल विश्वासों से अवगत कराइए।
- प्रश्न- उपवास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दू धर्म में लोगों के गाय के प्रति कर्तव्य से अवगत कराइये।
- प्रश्न- हिन्दू धर्म में
- प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारत आक्रमण का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुहम्मद गोरी की भारत विजय के कारणों की सुस्पष्ट व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राजपूतों के पतन के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण के क्या कारण थे?
- प्रश्नृ- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा कैसी थी?
- प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
- प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति पर टिप्पणी लिखें।
- प्रश्न- 11-12वीं सदी में भारतीय शासकों के तुर्कों से पराजय के क्या कारण थे?
- प्रश्न- भारत में तुर्की राज्य स्थापना के क्या परिणाम हुए?
- प्रश्न- मुहम्मद गोरी का चरित्र-मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- अरबों की असफलता के क्या कारण थे?
- प्रश्न- अरब आक्रमण का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तराइन के प्रथम युद्ध पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत पर तुर्कों के आक्रमण के क्या कारण थे?
- प्रश्न- महमूद गजनवी का आनन्दपाल पर आक्रमण का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- महमूद गजनवी का कन्नौज पर आक्रमण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ का विध्वंस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। [
- प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमण के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामों पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मोहम्मद गोरी की विजयों के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- भारत पर तुर्की आक्रमण के प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।